STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

बेमतलब से हम

बेमतलब से हम

1 min
276

बेमतलब से हैं हम

और जीवन का उत्सव मना रहे हैं

उम्मीद यहीं से जन्मती है

और जीवन सक्रिय हो हो उठता है

अपने अर्थ में।

ये खुद में होता है तो

औरों के लिये हो जाता है।

कहते थे न

तुम हो तो आशा

तुम हो तो हमसे जलती निराशा

और अब तो तुम्हें होना भर है

निराशा के केंद्र में

चलते हुये जीवन के उत्सव में।

उम्मीद थी

और बढ़ रही है

तुम अपना ख़याल रखते हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract