बेकरार
बेकरार
उनके ख़िलाफ तूने क्यों उठाई आवाज़?
जो पहनते है मख़मली लिबास।
नोंचते गिद्दों से बचा के बुल-बुल,
पाया तूने क्या ईनाम ?
महफ़िल में बैठे अपनों के चेहरे,
भी जो भी लगते हैं अनजान।
झूठे इस शहर में क्या है तेरी औकात ?
बुनियाद पे सच की कर डाली जिंदगी बर्बाद।
तुझे रोकता है तेरा वज़ूद हर बार।
ऐसे गुनाह किये हे तूने कई हजार।
मिटा के अपने ही अक्स को,
फिरता क्यों है "बेक़रार। "