बेजुबान था
बेजुबान था
बेजुबान था,ना समझा,
इंसानों की इस फितरत को,
जो जख्म दिया है,
कौन माफ़ करेगा इनकी हरकतों को ?
क्रुरता की बलि चढ़ गई,
वो एक गर्भवती हथिनी थी,
रूह काँप उठी, जिंदगी डर गई,
मौत सिरहाने थी,
समय बीत गया लेकिन आज भी,
याद करते हैं केरल की उस घटना को
बेजुबान था,
ना समझा इंसानों की इस फितरत को।
कौन सुनता यहाँ,
बेजुबानों की दर्द भरी कहानी को,
आँखों से बहता दर्द भरा नीर,
मौत मिली उस बेजुबानी को
दर्द के इस घाव को कैसे भरें हम,
आदमियत आज कुछ बौनी हो गई,
भूल ना पाएंगे इस घटना को,
वो तो बेजुबान था,
ना समझा इंसानों की इस फितरत कोI
बेजुबान थी वो हथिनी,
भूख से खाना ढूँढ रही थी,
पटाखों से भरा अनानास देखा,
चाहत थी उसको खाने को,
खिला गया अनानास कोई उस,
गर्भवती हथिनी को,
पटाखा जब मुंह के अंदर फूट गया,
हाय वो कितना तड़पी थी,
कई दिनों तक खड़ी रही तालाब में,
आखिर मृत्यु आनी थी,
वो तो बेजुबान था,
ना समझा इंसानों की इस फितरत कोI
गर्भवती हथिनी की मौत ने,
झकझोर कर रख दिया देश को,
आज हर कोई एक ही सवाल पूछता,
क्यों मार दिया इंसानियत को,
ये घटना आज भी विचलित करती है,
क्यों मारा था उस,
भूखी गर्भवती हथिनी को,
वो तो बेजुबान था,
ना समझा इंसानों की इस फितरत कोI