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SHWETA GUPTA

Romance

3  

SHWETA GUPTA

Romance

बेज़ार हूँ मैं

बेज़ार हूँ मैं

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जब से वे दूर गए हैं, उनकी तलबगार हूँ मैं,

ग़मज़दा हुई हूँ इस कदर, बड़ी बेज़ार हूँ मैं।


जिनकी आहट, मेरी मुस्कान हुई करती थी,

उनकी झूठी मोहब्बत में, गिरफ्तार हूँ मैं।


अब न चूड़ी है खनकती, न बजती पायल,

खामोशी छाई है हर तरफ, गुनहगार हूँ मैं।


वे मेरे रंग साज़ थे, मैं थी उनके रंग रंगी,

अब बेरंग खड़ी हूँ, खामोश फनकार हूँ मैं।


मेरे चेहरे पर कभी, शोख़ हँसी रहती थी,

ज़िंदा लाश बनी हूँ, एक मज़ार हूँ मैं।


अश्कों में भीग 'श्वेता', गज़ल कहने लगी,

बस यह नहीं कहती, किसी का प्यार हूँ मैं।


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