बे-गुनाह
बे-गुनाह
उन गुनाहों की मुझे कभी परवाह न थी
कुछ चाहते थी मगर ऐसी अरमा न थी
यु ही हर तारीख हम कटघरे मे होते
और हर बार हमारी मिन्नत मुल्तवी होती
घिसटते-घिसटते एड़िया जवाब दे चुकी
कुर्ता-पायजामा था तो पहना
लेकिन वो लिबाज न थी
सिर पर बालो का यु बिखरा रहना
चेहरे पर ज़ुर्रियो का अब बस यह कहना
"थक गया हूँ इंतजार में फैसले के
हर बार मिलती है तारीख देखने में
इल्तजा है मेरी अब मुझे बक्श दो
ना हो आज़ादी मेरे हिस्से ना सही
लेकिन फाँसी का तो अब मुझे तख़्त दो !"
