Amit Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Amit Kumar

Abstract Classics Inspirational

बदस्तूर

बदस्तूर

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एक अंदाज़ जो भूल गया था

मुझे और तुम्हे आज

एक दोस्त की महफ़िल में

अचानक बदस्तूर याद हो आया


फिर क्या था छिड़ गया

दर्द-ए-ग़म और आँख नम

जाने कहाँ से गीत वो 

पुराने यूँही चले आये

अज़ब भी और ग़ज़ब भी है


तेरी चाहत तेरी मौज़ूदगी

मेरा ख़ज़ाना भी है और

मेरा हक़ भी है

जिससे अब तक महरूम रही

मेरे दिल की नाकाम हसरतें


बुझ रहे है चराग़ और 

दिल जल रहा है कोई सूरत हो

जो तू आये और रोशनी अंधेरों के

पार हो जाये उजालों की धुंधली सी

शमां तेरा अक़्स बनकर उभर आये...


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