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Ajay Singla

Tragedy

4  

Ajay Singla

Tragedy

बदलती दुनिया

बदलती दुनिया

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ये आया है जो जलजला 

बहा ले जाए न कहीं 

पूरी दुनिया घर में कैद है 

संग दोस्त कोई भी नहीं। 


वो पार्क में सुबह योग और 

फिर भागना और दौड़ना 

फिर बेटी को ले के साथ में 

स्कूल में वो छोड़ना।


और लंच टाइम ऑफिस का वो 

सबके टिफ़िन जब खुलते थे 

फिर गप्पों का वो दौर और 

हंस हंस के हम सब मिलते थे ।


फिर घर को आना और वहां 

पत्नी की वो चाय कड़क 

जो रहती लोगों से भरी 

अब सूनी सूनी वो सड़क।


शाम का वो टहलना 

वो घर के बाहर महफिलें 

वो बाजू वाले शर्मा जी 

और उनके शिकवे और गिले।


जो रात को खाने बाहर 

जाते थे हम कभी कभी 

मूवी बड़े पर्दे की थी 

टीवी पर देखी है अभी।


हालाँकि कुछ अच्छा भी है 

जैसे पंछिओं का चहकना 

छत पर वो शाम को टहलना 

और फूलों का वो महकना।


साँसों में वो शुद्धता 

और टिमटिमाना तारों का 

बचपन में गिनते थे उन्हें 

और नाम याद था सारों का।


ये लॉक डाउन ये मास्क से 

छुटकारा इनसे कब मिले

अब याद आएँ मुझे बहुत

वो पुराने दिन वो सिलसिले ।


ये बीमारी है या बला कोई

क्या ये जंग है, अभिशाप है

प्रकृति से कोई छेड़छाड़

या हमारा किया कोई पाप है।


ये दुनिया कैसी होगी अब

घंटों में एक एक पल गया

ना जाने अच्छी या बुरी

पर स्वरूप इसका बदल गया।









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