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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

बदलने लगे है

बदलने लगे है

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बुझे चराग फिर से जलने लगे हैं, जब से हम खुद से बदलने लगे है

अब नहीं करते कोई टाइम पास, वक्त का हर लम्हा संभालने लगे है

टूटे हुए थे, कभी आईनों से ज्यादा, अब खुद आईने हम बनने लगे है

बुझे चराग फिर से जलने लगे हैं, जब से हम खुद से बदलने लगे है


अब भूत को याद कर नहीं रोते है, वर्तमान को सुनहरा करने लगे है

ख्याली-पुलाव बनाना छोड़ दिया है, अब हकीकत के घर बनने लगे है

बुझे चराग फिर से जलने लगे हैं, जब से हम खुद से बदलने लगे है


नींद छोड़ दी, आलस्य तोड़ दिया है, अब मेहनत की रोटी खाने लगे है

अमावस में चाँद-पूनम बनने लगे है अब हम खुद को पूरा बदलने लगे है

बुझा रहे है, श्रम-आंसुओं से प्यास, खुद ईमान से हम निखरने लगे है

बुझे चराग फिर से जलने लगे हैं, जब से हम खुद से बदलने लगे है



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