बदलाव
बदलाव
अनदेखी,अनजानी सी....उस लड़की से,
लगा मैं पहले भी हूंँ कहीं मिली।
वही शक्ल,माथे पर तिल और बड़ी सी बिंदी....
लगा जैसे सालों से मिलती आई हूंँ कहीं।
जो भी थी चिरपरिचित सी थी।
बहुत सोचा,बहुतों से पता किया,
सबने अपना जवाब मुस्कुराहट में दिया।
फिर पुरानी यादों के पन्ने खोल बैठी,
मन के आइने को झाड़,अपनों के लिए सोचने बैठी।
सबसे करीबी कोई अपना याद किया,
अरे ये क्या !
ये तो मेरा ही प्रतिबिंब शीशे ने दिखला दिया।
फिर आइने में से आवाज़ आई....
"अरे पगली इतना बदल गई कि
अपने आप को ही न पहचान पाई।"
अब मैं भी हौले से मुस्कुराई,
सच ये तो 'मैं ही हूँ'
अब तक मैं खुद को ही न जान पाई।
याद किया समय के साथ बदल जो गयी हूँ,
'लोग क्या कहेंगे' से निकल,खुदके के लिए जीना सीख गई हूँ।
चेहरे को....छाई परेशानी से मुक्त कर चुकी हूँ।
खुश हूंँ तो बिंदी बड़ी लगाने लगी हूँ,।
मुस्कुराते चेहरे पर 'मैं कुछ हूँ' कि फतह दिखलाने लगी हूँ।
मन से तो आज भी वही हूँ,
बस अपने वजूद से सबका परिचय करवाने लगी हूँ।
