बढ़ता कदम
बढ़ता कदम
दिल में नश्तर चुभे, ठोकरें भी लगी।
वो काँटों पे काँटे बिछाता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।
कोई अपना ना कोई पराया यहाँ,
राह का हर निशां ये बताता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।
जंग दिल में लगी, जंग होने लगी,
तीर तर्को के वो फिर चलाता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।
मील के पत्थरों से पता पूछता ,
हरेक बार धोखा ही खाता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।
रिश्तों के शहर में, ठिकाना नहीं,
सम्भलता कभी डगमगाता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।
जब खुद से पता पूछने लग गए,
साथ खुद का हमें रास आता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।
अब ना कोई फिकर, है मन में सबर,
मन का दीपक अंधेरा मिटाता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।
रास्तों के जंगल महकने लगे ,
इन्दु बन मैं स्वयं जगमगाता गया।
हर बढ़ता कदम कुछ सिखाता गया।