बड़े बेरौनक से थे हम
बड़े बेरौनक से थे हम
मेरी ग़मगीं रुख़ को बख़्शी तूने फ़रह़त ,
ओ ऊपर वाले दोस्त , तेरे क्या कहने !
लाया तू ही पैग़ाम ए मसर्रत का मेरे ,
तेरी रहमत मुझ पे ऐसी, तेरे क्या कहने !
हम जो दर्द दिल से लगा कर बैठ गए,
दर्द में भी है तेरे लज़्ज़त तेरे क्या कहने !
गुलमोहर की शाख़ों जैसे बेरौनक़ थे हम ,
तुझसे बढ़ी हमारी क़ीमत यारा, तेरे क्या कहने !
भटके थे हम राहे ह़क़ से जितनी बार ,
तू ने दिखाई राहे सदाक़त, तेरे क्या कहने !
यूँ लगता है कि, आया तू बन के मसीहा मेरा ,
तू ने हमें दिलाई ग़म से राहत, तेरे क्या कहने !
बिन तेरे सूना सूना था मेरे दिल का हर मंज़र ,
तू ने किया मेरे ख्वाब को हकीकत, तेरे क्या कहने !
लाखों चेहरे देखे हमने कोई न भाया दिल को ,
दिल को भायी तेरी मासूम सूरत, तेरे क्या कहने!