बड़भागी रात
बड़भागी रात
बीती रात कमल दल फूले
मालूम हुआ ऋतु बदल गई
मेघ भरे घन पुलकित हुए
उनकी भीगी सी नींद ओझल हुई।
भंवर गीत का गान हुआ
मकरंद का रसपान हुआ
ओस के मोदक को चखकर
अरुण का उजला उत्थान हुआ।
वसुधा तकती रही कमल को
तितली के हाथ संदेशे भेजे
महकाओ मुझे मेरे तट से लिपटकर
मधुकर तुमसे यहीं रस खींचे।
ये रात है देखो बड़भागी
रात चांद की शर्म खुले,
रात मधुकर रास रचाए
और रात कमल दल फूले।
