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Jitendra Vijayshri Pandey

Abstract

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Jitendra Vijayshri Pandey

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बचपना

बचपना

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बचपना को बचपना ही रहने दो न,

आख़िर क्यों लादते हो जिम्मेदारियों का बोझ प्यारे।

बच्चों को बच्चा ही रहने दो न,

आख़िर क्यों बनते हो बचपन के हत्यारे।।

बचपना...


इन मासूमों की मासूमियत को बरक़रार रहने दो न,

नादानियां करते बहुत खूबसूरत लगते हैं बेचारे।

क्यों बनाना चाहते हैं बचपन से ही उसे यंत्र मानव,

आख़िर क्यों हो गए हो इतने बावरे।।

बचपना...



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