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Nand Kumar

Abstract

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Nand Kumar

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बचपन

बचपन

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बार बार आती है मुझको

बचपन की वह यादे। 

मोहक थे दिन सुन्दर थी

सब सपनो बाली रातें।।


नही किसी की कोई चिंता

करते थे मनमानी।

बाल सखाओ से मिल खेले

आती याद पुरानी।।


गुल्ली डन्डा गेंद वृक्ष पर

चढकर के फल खाए।

दादी नानी सुना कहानी

लोरी गा के सुलाए।।


बाल सुलभ की अगणित हमने

सबसे ही सैतानी। 

बचपन सी न अवस्था मोहक

निर्मल तन मन वाणी।।


सबका मिला प्रेम पाए

सबसे उपहार अलौकिक।

एक प्रेम से रहित व्यर्थ

सब रिश्ते नाते लौकिक।।


फिर से गर मिल जाए वो पल

भूल सभी झंझट जाऊं।

बच्चों के मिल साथ स्वयं

 फिर से बच्चा बन पाऊं।।


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