बचपन की याद
बचपन की याद
ना जाने कहाँ खो गया,
बचपन का वो सावन।
ना जाने कहाँ खो गया,
वो मौसम मनभावन।
ना जाने कहाँ चली गईं,
अपनी सुनहरी हस्तियां।
जब बारिश के पानी में,
तैरती थीं अपनी कस्तियाँ।
ना जाने कहाँ खो गए,
वो झूले और गुड्डे-गुड़िया।
याद बहुत आती है अब,
वो चूरन की छोटी पुड़िया।
ना जाने कहाँ खो गए,
जो दोस्त पुराने थे अनमोल।
और आज चुकाना पड़ रहा,
यहां हर रिश्ते का मोल।
बचपन के सारे खेल निराले,
लगते हैं अब सभी अजीब।
छुपन-छुपाई, चोर-सिपाही,
या फिर खेलो राजा-बजीर।
ना जाने कहाँ खो गए,
वो सपने सारे बचपन के।
आज बहुत याद आते हैं,
जब हम हो गए पचपन के।