बचपन की साईकल
बचपन की साईकल
एक साईकल मेरी कहीं खो गई है
हवा से जो रोज़ पेंच लड़ाती थी
बेफिक्र घंटी बजाते
मोहल्ले की हर गली से जाती थी
वह साईकल मेरी खो गई है !
जिस साईकिल की चेन लगाते,
हवा भरते
दो दिल मिल जाया करते थे
वो साईकिल मेरी कहीं खो गई है !
जो मेरे और मेरे साथियों का
बोझ उठाते,
पैडल मार इधर - उधर लड़खड़ाते
मंज़िल तक पहुंचा जाती थी
वह साईकिल मेरी खो गई है !