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Omdeep Verma

Abstract Children Stories Fantasy

5.0  

Omdeep Verma

Abstract Children Stories Fantasy

देख माँ मैं आ गया

देख माँ मैं आ गया

2 mins
356


वादा किया था ना इस बार आने का 

देख माँ तेरा लाडला आ गया। 

अरे तू इस खत को अभी तक संभाले है 

छोड़ इसे वो वक्त तो कब का चला गया।।

 

जरा भी बिगड़ना मत माँ अब 

देख होली से चार दिन पहले आ गया हूँ। 

जो मुझे आने ही नहीं देना चाहते 

लगता है सरहद की फिजाओं को भा गया हूँ।।

 

माँ तू कुछ दिन काम धंधों से दूर रह 

घर के सारे काम अब बस मेरे हैं। 

जितने दिन तेरा बेटा छुट्टी पर है 

माँ आराम करने के दिन तेरे हैं।।

 

बाबूजी कहाँ है और उनके घुटनों का दर्द 

परसों फोन पर तो बहुत तेज बता रहे थे। 

मैंने सोचा अब तो आराम कर रहे होंगे 

पर वह तो उस वक्त खेत जा रहे थे।।

 

कितनी बार कहा छोड़ दो खेतीबड़ी 

पर वह है कि मानते ही नहीं है।

कह देते कुछ नहीं हुआ अभी मुझे 

हम तो जैसे कुछ जानते ही नहीं है।।

 

यह क्या माँ मैं नहीं होता हूँ तो भी 

तू रोज मेरी बाइक को साफ करती है। 

अरे भोलीमाँ कुछ नहीं बिगड़ता इसका 

क्यों इस पर अपना वक्त खराब करती है।।

 

माँ दीदी को भी तुम यहीं बुला लो 

अबकी उनके ससुराल नहीं जा पाऊंगा। 

सब दोस्तों से भी तो मिलना है मुझे 

फिर पता नहीं मैं कब आ पाऊंगा।।

 

वह कपड़े कहाँ रखे निकाल लेता हूँ 

जो हम होली वाले दिन पहनेगें। 

चलो माँ तुम तैयार हो जाओ 

आज हम बाजार घूमने चलेंगे।।

 

माँ बाबूजी से कहना मैं होली के दिन 

भांग पीकर आऊं तो डाँटे ना।

तुमको पता है मैं कभी नशा नहीं करता 

बस थोड़ी सी भांग! बाबूजी बस डाँटे ना।।


जो तूने यह मेरे लिए लड्डू बनाकर रखें 

सब मेरे ही है किसी को मत देना। 

बहुत याद आती है इन लड्डूओं की 

जाते वक्त कुछ साथ में बांध देना।।

 

माँ तुम बाजार के लिए तैयार हो जाओ 

मैं थोड़ी देर खेत जाकर आता हूँ। 

मैंने जो पौधे लगाए थे वो पेड़ बन गए होंगे 

बेर भी पक गए होंगे खूब सारे खाकर आता हूँ।।

 

अब्दुल चाचा से भी मिलता आऊँगा

शिकायत करेंगे कि मिलने तक ना आए।

वैसे तो दस दिन की छुट्टी मिली है 

फिर भी पता नहीं कब फोन आ जाए।।


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