सनकी बुड्ढे
सनकी बुड्ढे
हम सब के अंदर इक छोटा सा बच्चा है,
थोड़ा प्रौढ़ है ,और थोड़ा बुड्ढा है,
खुद से बातें करता है, हँसता है ,रोता है
हर इंसान के दिल में सुन लो भाई
इक छोटा सा गुड्डा रहता है।
कहाँ आना है कहाँ जाना है
कभी खुद को भूल जाता है
कुछ देर कहीं पर रूककर
कभी खांसता है कभी हांफता है
हर इंसान________
जब कभी मन टूट जाता है
सम्हलने में थोड़ा वक्त लगता है
जब धीरज कम हो जाता है
काम मे थोड़ा वक्त ज़्यादा लगता है
हर इंसान ________
कभी बच्चों की तरह ज़िद्द करता है
छोटी बातों को दिल से लगाता है
मजबूरी पर अपनी दुखी हो जाता है
वह हर दम साथ किसी का चाहता है
हर इंसान________________
पुरानी यादों में अक्सर खो जाता है
घर मेरा भी है, दिल उसका कहता है
कोई सनकी कहे तो दिल उसका रोता है
तब रात रात भर नींदों में वह जागता है
हर इंसान_______________
चलते चलते सफर में जीभ का स्वाद कच्चा हो जाता है
कुछ अलग तरह के व्यंजन मन खाने को करता है
समय का परिवर्तन चिंता में उसको डालता है
छोटी छोटी यह तब्दीलियां परिवार समझना ना चाहता है
हर इंसान____________
क्या पाया क्या खोया इसका हिसाब लगाता रहता है
ज़िन्दगी कितनी कश्मकश भरी थी ,आँखों में पानी आता है
जीवन सिर्फ अब एक पानी का बुलबुला लगता है
कब बह जाये लहरों में , इसका इंतज़ार रहता है
हर इंसान ________
माँ बाप ऐसे फूल है जो दोबारा कभी खिलते नहीं
हज़ार कोशिशें फिर करो, जाने के बाद मिलते नहीं
भूलो मत कभी है वे हमारे जन्मदाता
कहलाते है पूजिनिया माता पिता
भूले से भी दिल उनका तुम कुचलना नहीं
उनकी भूली भिसरी बातों पर ज़हर कभी उगलना नहीं
आज जिस कगार पर है वह खड़े , कल होगा हमारा ठिकाना वही
अपनी मदमस्ती में उन्हें न्याय देना कभी भूलना नहीं
धन मिलेगा, दौलत मिलेगी ,आशीष उनका कभी नहीं
गर उनके रस्ते हो काँटों के , अपनी बगिया कभी खिलेगी नहीं।
