लाॅक डाउन में बचपन याद आया
लाॅक डाउन में बचपन याद आया
प्यारा था वो जैसा भी था,
बचपन मेरा कैसा भी था?
सोचूं तो लगता है देखो,
बचपन मेरा ऐसा भी था।।
आज उतर आया आँखों में,
प्यारी सी तस्वीरें लेकर।
पहुंच गईं उन गलियों में फ़िर,
यादों के अफसानें लेकर।
दादा-दादी, चाचा-चाची,
सभी साथ में रहते थे हम।
ताया-ताई, फूपी, भाई,
सुख दुःख सारे सहते थे हम।।
कभी लड़े थे चाचा, ताऊ,
मगर साथ में खाते थे सब।
कितनी भी दिल में रंजिश हो,
गले मगर मिल जाते थे सब।।
दादा की टंकी में इक दिन,
डुबकी खूब लगाईं थी जब।
अम्मी के डंडे से हमने,
खूब पिटाई खाई थी तब।।
गर्मी में बारिश होने की,
दुआ बड़ी मांगा करते थे।
घर-घर जाकर पैसे-आटा,
कैसे हम मांगा करते थे।।
साइकल का टायर इक डंडी,
लेकर ही ख़ुश हो जाते थे।
और कोयला ले दीवारें,
गलियां भी खूब सजाते थे।।
आइस-पाइस पोशंपा और,
खेला घोड़ा-जमाल साई।
खेल निराले खेलें हमने,
आगे पीछे मार खिलाई।।
पतंग उड़ाते थे हम छत पे,
पर ताऊ से सब डरते थे।
देख बड़ों को आदर देते,
सबकी खिदमत करते थे।।
भरी दोपहरी ख़रबूज़े के,
हां बीज बहुत हम खाते थे।
रात हुई तो गर्मी में हम,
सब छत पर ही सो जाते थे।।
कच्छे आम नमक मिर्ची से,
यार बहुत खाया करते थे।
बिजली उसकी उड़ा हवा में
,हम बीन बजाया करते थे।।
माचिस की डिब्बी के पत्ते,
पिठ्ठू और गुल्ली डंडा।
बीमारी में दादी के हाथों से
पहनाया था गंडा।।
टीचर बनकर साड़ी पहनी,
औ घर-घर हमने खेला था।
जन्मदिवस भी याद नही था,
सब कुछ तब अलबेला था।
बी.सी.जी का टीका लेकर,
डॉक्टर घर पे आते थे तब,
देख गली में उनको सारे,
कहां-कहां छुप जाते थे तब।।
बचपन अपना कैसा गुज़रा,
नन्ही- नन्ही झांकी हैं।
कितनी यादें बांटी मैंने,
फ़िर भी कितनी बाकी हैं।।
