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Radha Shrotriya

Children Stories Tragedy Inspirational

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Radha Shrotriya

Children Stories Tragedy Inspirational

दिहाड़ी मजदूर

दिहाड़ी मजदूर

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मजबूरी भी क्या शै

है जो चाहे करवा लेती है इंसान से__ कोरोना का कहर बरपा है..

 मजदूरी नहीं मिल रही रहने खाने का ठिकाना नहीं

धूप, छाँव, बारिश खुद को हर मौसम के हिसाब से ढाल लेते हैं 

ये दिहाड़ी मजदूर! 

दो चुल्लू दूध में पानी मिला गिलास में शक्कर घोल पकड़ा देते हैं

मुनिया को पी लेती है

वो गट गट कर चॉकलेट, बोर्नवीटा कुछ नहीं चाहिए होता

इन बच्चों को, तब भी स्ट्रॉंग है ये देखो चले जा रही पैदल

अपनी छोटी बहन को गोदी में लेकर!

 गुड़िया से खेलने की उम्र में माँ जैसी समझदारी आ गई है 

कोमल, नाज़ुक सी पगतलियाँ दर्द करती होंगी चुभते होंगे

कांटे इन नन्ही नन्ही सी मासूमों के पैरों में भी! 

नवरात्रि के दिन चल रहे हैं कोई पैर क्यूँ नहीं पूज रहा है इन देवियों के ?

 साक्षात माँ दुर्गा, काली सी लग रही हैं

अपने माँ पिता का बोझ उठा रखा है

 जिन हाथों में खिलौने कुछ खाने का सामान होना चाहिए,

उनसे माँ पिता का बोझ ढो मदद कर रही हैं..

मेरा मन कर रहा है इनके रास्ते में पढ़ने वाली रहगुज़र पर अपना आंचल बिछा दूँ!

इनके सर पर अपना ममता भरा हाथ रख

इन्हे दूध भात खिला कर इनके पैरों को धुलाकर अपने पल्लू से पोंछ महावर लगाऊँ!

 इनके माथे पे कुमकुम का टीका लगाकर

 गुड़िया, चूड़ी, बिंदी, रूमाल और खूब सारी टॉफी दे दूँ इन्हें!

  इनके माता पिता के लिए भी रास्ते का खाना पानी साथ रख दूँ!

कन्या के साथ लंगूर और सुहागन खिलाने का भी रिवाज है

हमारे यहाँ! इन कन्याओं को भूखा, प्यासा

हजारों मील पद यात्रा पर जाते देख देवी के कोप से किसी को डर क्यूँ नहीं लग रहा.???

कोई सरकारी गाड़ी इन्हें इनके गंतव्य तक क्यूँ छोड़ने नहीं जा रही..

कोरोना के संक्रमण का खतरा इन्हें नहीं है क्या

और फिर वो लोग जो इनके संपर्क में आएंगे? 

या फिर दिहाड़ी मजदूरों पर कोरोना का असर नहीं होगा.? 

इनके रास्ते में कोई इंसानो की बस्ती नहीं है क्या..?

इन नन्हे कदमों की आहट कलेजे को नहीं कंपा रही है

क्या अगर इंसानियत बाकी है

तो इन लोगों को रास्ते में खाने पीने के सामान की व्यवस्था कर दो बहुत स्वावलंबी होते हैं

ये दिहाड़ी मजदूर भूखे पेट रह लेंगे

पर मांगेगे नहीं!

जंगली फूलों से होते हैं

इनके बच्चे आंधी पानी हार मान लेते हैं

इनसे इनके जन्मते ही किसी पेड़ पे साड़ी का झूला बांधकर

इन दुधमूहें नवजात शिशुओं को उसमें डाल देती हैं

इनकी माँ, न चाकू रखती सिराहने न काला धागा बाँधती रास्तों की दुश्वारियां घुटने टेक लेती हैं

इनके आगे! अपने गाँव, और अपनो से मिलने की उम्मीद दीप सी प्रज्ज्वलित है

इनके मन में!!!

 इनकी हिम्मत को मेरा सलाम है


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