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सोनी गुप्ता

Abstract Children Stories

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सोनी गुप्ता

Abstract Children Stories

बचपन की होली

बचपन की होली

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आज भी याद आती है वो बचपन की होली, 

दिल हमारा बच्चा था पर बहुत ही सच्चा था, 

होली की तैयारी तो महीने भर पहले होती थी, 

रंगों से खेलना मस्ती करना अच्छा लगता था, 

आज बड़े हो गए तो लगता सब थम सा गया है, 


पूरे परिवार का इकट्ठा होना वह हंसी ठिठोली, 

पकवान व गुजिया बनाने में माँ का हाथ बटाना, 

और बनाते- बनाते पकवानों का खूब स्वाद लेना, 

खुद भी खाना और अपने दोस्तों को भी खिलाना , 

आज भी याद आती है वो बचपन की होली ! 


गुलाल,रंगों की दुकानें सज जाती थी बाजारों में, 

एक नहीं कई रंगों को हम खरीद लिया करते थे, 

किसी को ना पता चले पहले ही छुपा लिया करते थे, 

दोस्तों को रंगने के लिए योजनाएँ बनाया करते थे, 

आज भी याद आती है वो बचपन की होली !


सुबह उठते ही खुद को रंगों से भरा पाया करते थे, 

गली में खड़े होकर खूब नाचना गाना होता था, 

और सभी दोस्तों को रंगों में डुबो दिया करते थे, 

ना कोई दुश्मनी ना ही कोई भेदभाव होता था, 

आज भी याद आती है वो बचपन की होली !


पूरा दिन होली में खेलने में ऐसे खो जाते थे, 

ना खाने की सुध होती थी ना आराम करने की, 

बस मन में खुराफात और एक ही विचार था, 

आज तो अपने दोस्त को पूरा का पूरा रंगना है, 

आज भी याद आती है वो बचपन की होली !


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