बचपन की दोस्ती याद कर रहा हूँ
बचपन की दोस्ती याद कर रहा हूँ


किस्सा नया फिर लिख रहा हूँ,
बचपन की दोस्ती याद कर रहा हूँ।
गिल्ली डंडे,कंचे के दौर अब कहाँ,
हर तरफ सोशल मीडिया है यहाँ।
अब नहीं दिखती दूरदर्शन पर रंगोली,
चैनलों की होड़ में खो गई हमारी बोली।
बच्चों को अब यह बता रहा हूँ,
टी वी मोबाइल कम देखना सीखा रहा हूँ।
बदलते दौर में मैं भी बदलता जा रहा हूँ,
मोबाइल से अब मैं भी चिपका जा रहा हूँ।