बचपन के दिन
बचपन के दिन
चलचित्र से उभर के चमकें, बचपन के दिन आज।
चिंता फिकर न कोई थी तब, मस्ती का था राज।
माँ का आँचल पिता की अँगुलि, का था हरदम साथ।
सदा रहे सिर पर मेरे शुभ, आशीषों के हाथ।
ममता की गंगा बहती थी , संस्कारों के साज।
चल चित्र से उभर के चमकें, बचपन के दिन आज।
कभी मचलती, कभी मानती, पल में जाती रूठ।
बस मेरी माँ यह कहती थीं, कभी न बोलो झूठ।
शैतानी करने से फिर भी, ना आती थी बाज।
चल चित्र से उभर के चमकें, बचपन के दिन आज।
नन्हें हाथों को थामे माँ, सिखलाती थी पाठ।
बड़े प्रेम से याद कराती, चार दुनी वो आठ।
छोटी- बड़ी कामयाबी पर, करती थी वो नाज़।
चल चित्र से उभर के चमकें, बचपन के दिन आज।
इल्ली- दुल्ली आइस- पाइस, गुड्डे -गुड़िया खेल।
मिलकर सब जन हँसते-गाते, अद्भुत था तब मेल।
मन से मन की बातें होतीं, ना थे कोई राज़।
चलचित्र से उभर के चमकें, बचपन के दिन आज।
नानी के घर जा कर हम तो, करते खूब धमाल।
घूम- घूम कर खेतों में भी, करते खूब कमाल।
छोटी - छोटी खुशियाँ पाकर, बन जाते सरताज।
चलचित्र से उभर के चमकें, बचपन के दिन आज।
