कोरोना काल
कोरोना काल
वक्त कैसा आज यह है आ रहा ?
मौत का डर विश्व में है छा रहा।
आदमी से आदमी भी दूर है।
डर रहा वह अब हुआ मजबूर है।
रोग - चमगादड़ मुसीबत ला रहा।
मौत का डर विश्व में है छा रहा।
काम सब हैं बंद, चिंता की घड़ी।
जेब खाली है मुसीबत है खड़ी।
अब नहीं मेला - तमाशा भा रहा।
मौत का डर विश्व में है छा रहा।
अब अकेले मन रहे त्योहार हैं।
जिंदगी की सूखती रसधार है।
एक सूनापन मनुज को खा रहा।
मौत का डर विश्व में है छा रहा।
सब्र के सब बाँध अब हैं टूटते।
देवता भी हैं मनुज से रूठते।
कुदरती विप्लव कहर अब ढा रहा।
मौत का डर विश्व में है छा रहा।
मौत का मुखड़ा घिनौना हो रहा।
दुर्दशा को देख युग यह रो रहा।
काल खुद ही अब रुदाली गा रहा।
मौत का डर विश्व में है छा रहा।
पर मनुज जीवट सदा से है बड़ा।
काल से भी वह हमेशा है लड़ा।
कोशिशों से वह सफलता पा रहा।
मौत का डर विश्व में है छा रहा।
