*बचपन*#5
*बचपन*#5
बचपन में जब गए,
हम स्कूल टीचर्स ने,
दी गणित सीखने की,
सीख हम थे नीरे बच्चे,
हमनें सीखा टीचर्स से,
एक और एक =दो
बचपन की अमिट छाप थी,
मन पर जो सिखाया
सीखा खुशी-खुशी,
रट लिया दो-दुनी, चार।
जब आया वो पल,
हमनें किया प्रवेश,
गृहस्थ जीवन में,
जब हुआ प्रीतम से,
मिलन प्रिये ने कहा।
हम एक और एक =दो नहीं हैं
हम एक और एक ग्यारह हैं,
हम सोच में पड़ गए।