बच्चों क्या क्या सीखूँ तुमसे
बच्चों क्या क्या सीखूँ तुमसे
बच्चों क्या क्या सीखूँ तुमसे,
दिल खोल के हंसना या बस यूँ ही रूठ जाना
या सीखूँ तुमसे पल में मनाना या कही छिप जाना
खेल खेल में जीतू सबसे या हार के आंसू बहाना
अपने और पराए में क्या मैं अंतर मानू,
खिलौने देने में मगर बड़ा कष्ट मैं जानू
दो पल में भूल जाऊं मैं कोई बात पुरानी
दिल को तसल्ली देती दादी माँ की बात सुहानी।
पापा को चिपक कर मैं मांगू चाँद और तारे
अम्मा के आंचल से दूर करूँ दुःख सारे
बच्चों क्या क्या सीखूँ तुमसे।