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Rashi Saxena

Classics

3  

Rashi Saxena

Classics

एक मज़ाक मेरा

एक मज़ाक मेरा

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212


मज़ाक हिस्सा रहा है यूँ तो मेरी ज़िन्दगी का 

दौर था एक जब बात कम मज़ाक ज्यादा थे 

पल पल में हँसते संग साथ सब हमारे थे 

बचपन की शरारतों का ब्योरा था मज़ाक मेरा।


हर मुश्किल से लड़ने का

तरीका था एक मज़ाक मेरा,

बड़ा दौर बड़ी उलझन पर

फिर भी न बदला दिल,

एक मज़ाक से सारे चेहरे जाते थे खिल।


हँसते हँसते गुज़ारे पल कई अनमोल, 

दोस्ती का जरिया तो कभी नाराज़गी का,

बना अक्सर ही एक मज़ाक मेरा,

पर ढलते सूर्य सी ज़िंदगी करती है।


कुछ अनसुलझे सवाल जब,

लगने लगते हैं मेरे अनमोल पल,

लाजवाब मज़ाक अब ,

किया तो मैंने मज़ाक सदा।


पर लगता है बस बना 

मेरा ही मज़ाक सदा,

चलो अच्छा है कुछ तो

उपयोग हुआ मेरा।


किसी के चेहरे की हंसी का राज़ ,

आखिर तो बना बस एक मज़ाक मेरा !

खुश हूँ मैं अब भी की बना पहचान 

हल्का खुशगवार सा एक मज़ाक मेरा !


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