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Suresh Koundal 'Shreyas'

Abstract Others Children

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Suresh Koundal 'Shreyas'

Abstract Others Children

बच्चों बिन सुनसान शिक्षा का मंदिर

बच्चों बिन सुनसान शिक्षा का मंदिर

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सुनसान गलियां, सूना है आंगन,

सुनसान है तुम बिन,ये शिक्षा का मंदिर।


कलियां अधखिली मुरझाईं सी,

बगिया में छाई है रुसवाई सी।


उदास खड़ा है वो पीपल का बूटा,

जब से है तुमसे साथ उसका छूटा।


तुम बिन जैसे हवाओं में श्वास नही,

हमें शिक्षक होने का एहसास नही।


न घण्टी बजती, न कोई होती सभा,

कक्षा का कमरा तुम्हारा सुनसान पड़ा।


मायूस हैं ब्लैकबोर्ड, पूछें ये दीवारें,

पाठशाला कब आएंगे मेरे बच्चे प्यारे ?


अनछुई सी उड़ रही खेल मैदान की धूल,

घर में हैं बैठे दुबके प्यारे प्यारे से फूल।


करोना विकराल,विकट है स्थिति बड़ी,

तुम्हे पाठशाला में पढ़ाने की चुनौती खड़ी।


हम सब यहां और तुम वहां परेशान हो,

बच्चो तुम वास्तव में विद्यालय के प्राण हो।


बुरा है समय ये तो कट जाएगा,

दुखों का है बादल ये छंट जाएगा।


जब कदम फिर तुम्हारे इसमें पड़ जाएंगे,

ये सूना उपवन फिर से महक जाएगा।


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