बातें
बातें
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वह बातें पुरानी
ऋतु थी वो सुहानी।
ढलती यामिनी में
खिलती चाँदनी में।
खनकी चूड़ियाँ थीं
बजती झांझरे थीं।
महकी टेसुओं सी
चहकी कोयलों सी।
फिर दोनों मिले थे
सपने क्या सजे थे।
नभ में वो उड़े थे
धरती से जुड़े थे।
सच वो जानते थे
घर की मानते थे ।
जकड़ी बेड़ियां थीं
पिछड़ी रीतियाँ थी।
ठिठकी रात है क्यों
ठहरी बात है क्यों।
अब ये दूरियां हैं
कि परेशानियाँ है।
कहता क्या जमाना
इसका है फ़साना।
बिसरा दो पुराना
अब गाओ तराना।