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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"बाते जलन की"

"बाते जलन की"

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आज वो ही बाते कर रहे जलन की

जिनके हृदय में भरी बातें घमंड की


वो जो खुद को शहंशाह समझते है,

दूसरे लोगों को यहां मूर्ख समझते है,


वो ही बातें कर रहे इंसानियत की

जिनके मुँह में बूंदे,स्वार्थी लहूं की


जिनके दीयों में दिखावे की रोशनी,

वो ही बाते करते,आदर्शों की बनी,


जिनकी खुद की जिंदगी अंधेरे की

वो ही बातें कर रहे आज आईने की


तू साखी ज़रा फिक्र न कर लोगों की

इनको आदत है,कुत्ते जैसे भौंकने की


तू बस चलता चल अपनी ही मस्ती में,

तू पहनकर चल सदा माला सत्य की।


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