बात बस इतनी सी ही होती है
बात बस इतनी सी ही होती है
बात बस इतनी सी ही होती है,
जैसे एक बूंद कोई छूकर गुज़र जाती है,
मिलते हैं कई बार आमना-सामना होता है,
ना मैं कुछ कह पाता हूं ना वो कुछ कह पाती है,
जाने ये कैसी ख़ामोश मोहब्बत है हमारी,
अल्फ़ाज़ नहीं मिलते दिल की बात दिल में रह जाती है,
जानता हूं उसे भी मोहब्बत है मुझसे बेइंतेहा,
इसलिए उसकी खामोशी भी मुझे उसकी ओर खींचती है,
सिलसिला यूं ही चलता रहा हमारे मिलने का,
मैं समझ जाता उसकी ख़ामोशी वो भी मेरी आंखें पढ़ लेती है,
दिल तो उस दिन जी भर कर रोया मेरा,
जिस दिन पता चला मेरी मोहब्बत तो बोल ही नहीं सकती है,
कहते हैं दोस्त यार छोड़ दो उसे ये प्यार नहीं धोखा है,
पर कैसे कर दूं खुद से अलग उसको वो मेरी जिंदगी बन गई है,
मेरी रूह में मोहब्बत बन कर बस चुकी है वो,
मैंने उसके अल्फाजों से नहीं उसकी खामोशी से मोहब्बत की है,
बात बस इतनी सी ही होती है,
जैसे एक बूंद छूकर गुजर जाती है,
खामोशी की बात भी समझ जाती है मोहब्बत,
क्योंकि मोहब्बत जुबां से नहीं दिल से की जाती है।
