बारिश और बाइक
बारिश और बाइक
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यह सावन की बूंदे,
जब जब अपनी
मधुर ध्वनि;
मेरे कानों मे घोलतीं हैं।
हर बार मुझे बस,
तेरी ही याद आती है।
कैसे हम भीगते हुए बाइक पर,
कहीं दूर निकल जाते थे।
बूंदों की झड़ी तेरी आंखों पर
एक पर्दा से बना देती थी।
कुछ भी नही दीखता
तब मैं ही अपने हाथों से,
तुम्हारे चेहरे से वह बूंदे
बार-बार साफ करती थी।
हम चलते जाते ,
बहुत दूर बहुत दूर तक
बाइक पर सवार;
रिमझिम बारिश का,
आनंद लेते हुए।
आज भी बारिश आती है
तू भी है और मैं भी वही
प्रेम भी और प्रगाढ़ है।
लेकिन
यह बैरी कार,
न जाने कहां ले गई;
वह सुहाना सावन
इसमें वह आनंद
कभी नही आता।
बारिश में बाइक पर
भीगने वाला
वह सावन कहीं खो गया
कहीं खो गया।