बालिका वधु
बालिका वधु
फूट फूट कर रो रही थी बेटी
लगकर माँ के आंचल से,
माँ क्यों किया विवाह मेरा बोलो ?
इस नाजुक सी आयु में,
अभी तो उम्र है माँ मेरी
गुड्डागुड़ियों का ब्याह रचाने की,
फिर क्यों मुझको बांध दिया ?
इन अनजाने से बंधन में,
कैसे छोड़ कर जाऊं अभी मैं ?
उम्र अभी हैं माँ मेरी
तेरे आंचल से लिपट कर सोने की
फ़िर क्यों तूने बाँध दिया माँ ?
इस पावन - पवित्र से धागों में
मैं तो छोटी गुड़िया हूं माँ
कैसे यह सातों वचन निभाऊँगी ?
अभी अभी जो हुए हैं पूरे,
तेरे इस बड़े सेआंगन में !
अभी तो उम्र है माँ मेरी
खेल कूद और पढ़ाई की,
फिर दूजे घर जाकर माँ
कैसे ब्याह की सारी रस्में निभाऊंगी ?
यह कैसा चलन है इस दुनिया का ?
मुझको तू इतना समझा दे माँ !
छोटी बालिका को बनाकर बधू
क्यों बैठा दिया है सबने डोली में ?
कुछ तो बोलो मेरी, प्यारी सी माँ
क्या उम्र मेरी है अभी सासरे जाने की ?
फूट-फूटकर रो रही थी बेटी,
लगकर मां के आंचल से !