बाल मनोविज्ञान
बाल मनोविज्ञान
बालक कहता यूं---
मेरा होगा संरक्षण जैसा
वैसा ही मैं रूप धरूंगा
गहरी होगी 'जडे़ ' जब
मेरी 'वृक्ष' समान महान
वैसा ही होगा' प्रभुत्व ' मेरा
बनूंगा इक दिन जब
"कल्पवृक्ष" मां मैं महान
दूंगा तब सबको " जीवनदान"
जितना ही रहूं गा "बलिष्ठतम "
उतना ही रहूंगा मैं " विस्तारित
गगनचुंबी मैं बन जाऊंगा तब
'धाराशाही ' नहीं होगा तब
"अस्तित्व" मेरा विशाल
पर जब "विकास" मेरा होगा
करे "वीरता" का संचार
" बाल्यावस्था" में मुझमें मात-पिता
बांध कर "सिर" करूं संहार
आंतकी सब होगें "बौने"
देख मेरे तेवर ही "कठोर"
भस्मीभूत। कर दूंगा सबको
बन जाऊं मैं "काल भैरव"
वज्र सा कठोर "प्रलयंकारी"
जब होगा मेरा " बालविकास"
"धरती" भी। जावेगी डोल
डोल उठेगा पूरा "पाताल"
झूमेगा संसार "मेरा होगा विकास"
बन जाऊंगा मैं " शोधकर्ता"
रच डालूं "गध- पध " इतिहास
पूर्ण पुरूष जाऊं "अकल्पनीय"
आत्मविश्वासी, अपराजित
चरित्रवान,ओ' सौष्ठवयुक्त
"मानवता' की भाषा जानूंगा
प्रचंड सूर्य सा तेज रहे
धर्मरक्षक ,सम्बलवान बनूं
पर होगा जब। "विकास" मेरा
नहीं। घूमना "फुटपाथों" पे
नंगे तन मन बेबस होकर
ठोकर खाते "बाहुबलियों"की
तंग गलियों में नहीं घूमना
दौड़ भाग कर "डान" मुझे
शान से जीना "मान" से मरना
नहीं गंवाना "बाल्यावस्था"
झिड़कियों और श्रमदानों में
" घरों घरों" की जूठन खाकर
नहीं सिसकना "यौवनावस्था" में
देख रईसों का वो "वैभव"
मांग भीख से नहीं बितानी 'वृद्धावस्था
बन जाऊं "भारत की शान"
माता के माथे का" टीका लाल"
पर अब ---???
जब ----
होगा मेरा "बालविकास "
बाल मनोविज्ञान
के आधारों पे
गर्भावस्था से ले "शैशव काल"तक