बाबा के सपने
बाबा के सपने
जब आँखे खुली
कुछ समझ आया नही
जब होश संभाला
मैंने अपनी उँगलियों को एक शख्स के हाथ में पाया कहीं
मेरा साथ वक़्त बिताने के लिए
मुझे हर तरीके से समझ पाने के लिए
मुझे हर ख़ुशी मुक़र्रर कराने के लिए
तोड़ दिये समाज के बंधन उसने
तब से, मेरे लिए अनमोल है बाबा के सपने।
मेरे बचपन में कदम से कदम मिलाया है
काँधे पर बैठाये हाट भी घुमाया है
अपनी कुछ न कह कर
बस मेरी सुनते रहते
मुझे जो चाहिए वो लाकर दिया
ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव का
मुझपर साया भी न पड़ने दिया
मेरी ख्वाइशें के लिए दिन रात एक कर दिये उसने
तब से, मेरे लिए अनमोल है बाबा के सपने।
होली, दिवाली और जन्मदिन पर
मेरे लिए नए कपड़े बनते
खुद साल में एक जोड़ी कपड़ा सिलाकर
वो मुस्कुराकर गुज़ारा करते
ऐसा लगता था उनकी मेरे अलावा कोई हसरत ही नही
एक रोज़ बातों बातों में पता चला
बचपन से मेरे लिए उन्होंने ख्वाब सजाये है कई
पर अपनी तो कभी कही ही नहो
और मुझ तक हर आराम पहुचाने के लिए
तोड़ दी मेहनत की हदें उसने
तब से, मेरे लिए अनमोल है बाबा के सपने।
