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Mani Loke

Tragedy

4  

Mani Loke

Tragedy

औरत

औरत

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औरत तेरी यही काहनी

कभी बेटी,बहन,पत्नी या माई।

औरत तेरी यही कहानी,

हर रिश्ते की नमक तू सयानी।

औरत तेरी यही कहानी।।

तेरे बिना नही कोई पूरा,

पर दावा ये सबका करे तुझको वो ही पूरा।

फिर भी बंदिशें तुझ ही पर,

सीता,गौरी,या हो अहिल्या युगों तर।

तेरे कपड़े ,तेरा सिंगार,खलते सबको तेरी चाल।

सीख सारी है तेरे हक में,

कहीं दाग न लग जाये दामन पे।

औरत तू तो माँ है सबकी,

अबला नही तू सबला युगों की।

तेरे हाथों चलना सीखा,

राम कृष्ण हो या हो मसीहा।

औरत फिर भी है तू अबला,

रीत जगत की है ये निराली ,

औरत तेरी यही कहानी।

कहते बराबर का हक हैं देते,

दफ्तर हो या लाइन में हम लगते,

फिर भी नज़रें क्यों तुम पर ही टिकती,

आंखों से ही क्यों टटोलती रहतीं।

औरत तू क्यों आस लगाती,

फिर भी सबकी दुत्कार है पाती।

घर संभाले दफ्तर तू संभाले,

दुनिया के हर क्षेत्र में तू आगे।

इस युग मे हर काम है साझे।

फिर भी निर्भया है तू औरत,

जब तुझको कोई नीच शिकारे।

तुझे न्याय अब मिलने लगा है,

मृत हो कर शायद सुकून तू पाले।

औरत तू तो अर्धांगिनी पुरुष की,

अर्ध नारेश्वर को करती पूरी।

औरत तू तो सबला दिल से,

हर मुश्किल सह जाती खुशी से

फिर क्यों तेरी ऐसी जिंदगानी।

औरत तेरी यही कहानी

औरत तेरी यही कहानी।


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