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औरत - एक हक़ीकत

औरत - एक हक़ीकत

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ज़िंदगी कभी मखमली धूप की तरह
और कभी काले बादलों की तरह
कभी बरसे फिर कभी नहीं
बरसे तो खुश हो जाते कुछ लोग
और बाकी रो लेते हैं
ना बरसे तो मिल जाते हैं
दूसरों से कुछ और करने के लिए
शायद बाढ़ आने वाली है
किसी ना किसी मोड़ पे
ज़िंदगी ज़रूर अपनी औकात बता देती है

मिल जाते हैं वो खुले आकाश में
जब कभी उन्हें कोई मिलता नहीं
अंधेरा से डर लगने लगा है शायद
तितलियों की तरह उड़ना उन्हें अब आता नहीं
आती है याद उन्हें वो ऊँचे बादलों को छूना
और फिर से हरियाली बिस्तर पे सोना
उँचाई से दर लगने लगा है शायद
पंख है सही सलामत पर उनमें हिम्मत नहीं
यही है जिंदगी जहाँ एक माँ, बहन, दीदी,
लड़की की जरूरत पता चल जाती है

 


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