औरत और धरती के मन का ज्वालामुख
औरत और धरती के मन का ज्वालामुख
औरत और धरती के मन का ज्वालामुखी
धरती ऊपर से शांत दिखे,
प्राकृतिक सौन्दर्य से आच्छादित हो,
रंगबिरंगे फूलों से दुल्हन सा श्रृंगार किए,
नदियां कल कल का संगीत सुनाएं,
अलौकिक सौंदर्य चहुं ओर दिखे,
ऊपर से सब कुछ शांत दिखे,
पर अंतःकरण में आग धधकती है,
जब प्रहार वक्ष पर हो उसके,
तब ज्वालामुखी बन फूट पड़े,
नारी जीवन भी कुछ ऐसा ही है,
ऊपर से मुस्कान लिए,
मन में दर्द का सागर है,
होंठों पर मधुर संगीत लिए,
मन में ज्वालामुखी लिए,
सहती जाए सहती जाए,
जबतक सहने की शक्ति रहे,
पर जब सहनशक्ति टूटे उसकी,
तब विध्वंस की ज्वाला भड़क उठे,
तब मचे तबाही घर के अंदर,
बाहर तक ज्वालामुखी फूल सा बिखर उठे,
नारी और धरती की सहनशक्ति,
होती है जग में एक समान,
दोनों ही मन में दर्द लिए,
सहती जाएं, सहती जाएं,
सबके जीवन को रंगीन करें,
खुद को रंग विहीन करें,
सबका जीवन खुशहाल रहे,
होंठों पर सबके मुस्कान रहे,
पर जब उनके मन का दर्द बढ़े,
तो बनकर वह ज्वालामुखी,
विस्फोटक हो जाती हैं,
हर जगह तबाही मचती है,
ज्वालामुखी के फूलों सी।।