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नविता यादव

Abstract

4.8  

नविता यादव

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अटखेलियां

अटखेलियां

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देखो - देखो क्या ऋतु छाई

अल्हड़ जवानी, सरसों संग लहराई,

बना बहाना खेतों में आई


फूलों का नज़राना,एक दूसरे पे बरसाई

देखो - देखो क्या ऋतु छाई

अल्हड़ जवानी, सरसों संग लहराई।


एक - एक फूल से गुथि माला

बना झुमका कानों में डाली

माथे पे सज़ा मांग टीका,


हाथों को भी सज़ा डाली,

कर रूप श्रृंगार फूलों से

अल्हड़ जवानी, सरसों संग लहराई

देखो- देखो क्या ऋतु छाई।


माधुर्य छलक रहा मोहिनी के मुख से

जैसे गुलाबों से धरा सुशोभित

अलंकारों की कमी नहीं है


हर एक ग़ज़ल बनी है धरा कहीं न कहीं से

ऐसा जादू लाया बसंत

प्रीत की डोरी संजोया बसंत


सब के दिल से एक ही आवाज़ आई

देखो-देखो क्या ऋतु छाई

अल्हड़ जवानी सरसों संग लहराई।


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