अटखेलियां
अटखेलियां
देखो - देखो क्या ऋतु छाई
अल्हड़ जवानी, सरसों संग लहराई,
बना बहाना खेतों में आई
फूलों का नज़राना,एक दूसरे पे बरसाई
देखो - देखो क्या ऋतु छाई
अल्हड़ जवानी, सरसों संग लहराई।
एक - एक फूल से गुथि माला
बना झुमका कानों में डाली
माथे पे सज़ा मांग टीका,
हाथों को भी सज़ा डाली,
कर रूप श्रृंगार फूलों से
अल्हड़ जवानी, सरसों संग लहराई
देखो- देखो क्या ऋतु छाई।
माधुर्य छलक रहा मोहिनी के मुख से
जैसे गुलाबों से धरा सुशोभित
अलंकारों की कमी नहीं है
हर एक ग़ज़ल बनी है धरा कहीं न कहीं से
ऐसा जादू लाया बसंत
प्रीत की डोरी संजोया बसंत
सब के दिल से एक ही आवाज़ आई
देखो-देखो क्या ऋतु छाई
अल्हड़ जवानी सरसों संग लहराई।