अतीत के आईने में
अतीत के आईने में
🌑 अतीत : स्मृति का शंखनाद
✍️ श्री हरि
🗓️ 19.8.2025
अतीत —
वह केवल बीते दिनों की परछाई नहीं,
वह तो राष्ट्र की धड़कन है,
वंश परंपरा की आत्मा है,
और भविष्य की ज्योति है।
जो अतीत को विस्मृत कर देता है,
वह अपने ही अस्तित्व की जड़ों पर
कुल्हाड़ी चला देता है।
स्मरण करो!
वह प्राचीन भारत—
जहाँ ऋषियों के तप से
वेद, पुराण, उपनिषद, स्मृतियाँ जन्मीं,
जहाँ ब्राह्मण-ग्रंथों में
ज्ञान का सागर उमड़ा,
जहाँ रामायण-महाभारत की गाथाएँ
धर्म और नीति की अमर ध्वनि बन
विश्व को दिशा देती थीं।
वह भूमि—
जहाँ शून्य ने अनन्त को पाया,
जहाँ खगोल और गणित के नव आविष्कार
भारत को विश्वगुरु के आसन पर
अभिषिक्त करते थे।
परन्तु…
हम एक न रह सके।
जाति ने हमें बाँटा,
उत्तर-दक्षिण ने हमें तोड़ा,
शैव-वैष्णव ने हमें भिड़ाया,
साम्राज्य के लोभ ने पावन धरा
रक्त-रंजित युद्धभूमि बना डाली।
यही विघटन था—
जिसने दाहिर को अकेला कर दिया।
वह अरबों की आँधी से जूझा,
पर भारत मौन दर्शक बना रहा,
और गुलामी की जंजीरें
धरती की कलाई पर कस गईं।
गजनवी आया—
सोमनाथ की निष्ठा को लूटा,
मंदिर की घंटियों को रौंदा,
धन-दौलत लूटी,
और गर्व से गजनी लौट गया।
भारत—अपनी कायरता के बोझ तले
चुपचाप सिसकता रहा।
जयचंद की गद्दारी ने
पृथ्वीराज चौहान के शौर्य को मिटा दिया।
गोरी की तलवारों ने
भारत को रक्त की गुलाम नदी बना डाला।
पद्मिनी का जौहर—
आज भी धधकती ज्वाला बन
हमारी आत्मा को झकझोरता है।
फिर उठे प्रताप और शिवाजी—
जिनके पराक्रम ने
मुगलों की नींव हिला दी।
परन्तु अपनों की ही कुटिलता ने
उनके स्वप्न को अधूरा छोड़ दिया।
मीर जाफर का विश्वासघात
भारत की आत्मा को
अंग्रेज़ी पगों में डाल गया।
जिससे भारत कंगाली के
महासमुंद में डूबता चला गया ।
1857 में बिगुल बजा—
आजाद पंख फडफडाए
मगर उड़ न सके ।
मंगल पांडे, कुंवर सिंह,
तांत्या टोपे, लक्ष्मीबाई—
ये सब क्रांति की ज्वालाएँ थे।
पर बेड़ियाँ फिर भी टूटी नहीं।
क्योंकि अपने ही लोग
अंग्रेजों के साथ खड़े थे
भारत को चिर गुलाम बनाने के लिए ।
तब आये वे—
जिनकी शहादत ने धरती को
क्रांति की गंगा से स्नान कराया।
भगत सिंह की हँसी,
आजाद की गोलियों की गूँज,
बिस्मिल की कविताओं का बिगुल,
ऊधम सिंह का प्रतिशोध—
इनसे भारत का रक्त
फिर से गरम हुआ ।
जिसने गोरों को भागने पर विवश कर दिया ।
सावरकर का लेखनी,
सुभाष का स्वप्न,
पटेल का पराक्रम—
इनसे आज़ादी की प्रभात बेला जगी।
पर याद रखो—
इतिहास की ज्वालाएँ अभी भी बुझी नहीं।
1946 का नोआखाली,
1922 का मोपला नरसंहार,
और 1947 का विभाजन
क्या भूल जाने योग्य है ?
कश्मीर का निर्वासन—
ये सब हमें चेताते हैं कि
मजहब का मीठा ज़हर
आज भी वायु में तैर रहा है।
केरल और बंगाल उसी ओर बढ़ रहे हैं।
हिंदू अभी भी सो ही रहा है ।
इसलिए—
हे भारतवासियों!
यदि अतीत को विस्मृत कर दोगे,
तो वर्तमान का किला भी ढह जाएगा,
और भविष्य अंधकार में डूब जाएगा।
अतीत हमें पुकारता है—
"एकता ही जीवन है,
विभाजन ही मृत्यु।"
अपने धर्म और संस्कृति पर गर्व करो
क्योंकि "धर्मों रक्षति रक्षित: !
🔥 संदेश
अतीत को स्मरण करो।
वह तुम्हारी ढाल है,
तुम्हारा कवच है।
अतीत को भूल जाना
स्वयं को मिटा देना है।
याद रखो—
जो राष्ट्र अपने अतीत को विस्मृत करता है,
वह इतिहास के पन्नों से
एक दिन विलुप्त हो जाता है।
