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Kusum Joshi

Tragedy

3  

Kusum Joshi

Tragedy

असमंजस में खोता जीवन

असमंजस में खोता जीवन

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असमंजस में खोता जीवन,

या जीवन में असमंजस है,

जीवन में कुछ दुख भी हैं या,

दुख ही बस जीवन है।


चहुँ ओर निराशा के साए,

मन क्या समझे उसे क्या भाए,

सब राह बंद ही दिखती हैं,

तब मंज़िल को कैसे पाएं?


भटक-भटक कर चलते भी तो,

पैरों में अब बंधन हैं,

जीवन में कुछ दुख भी हैं या,

दुख ही बस जीवन है।

असमंजस में खोता जीवन।।


सूरज चंदा और सितारे,

पात्र कथा के लगते हैं,

अच्छाई के किस्से सारे,

कोरे सपने लगते हैं।


सपनों में ही जी लेते पर,

नींद से ही अब अनबन है,

जीवन में कुछ दुख भी हैं या,

दुख ही बस जीवन है।

असमंजस में खोता जीवन।।


कह लेते थे मन की बातें,

पहले बिना किसी डर के,

खोने पाने की चिंताएं ना थी,

जी लेते थे निर्भय होके।


कहना चाहें अब मन की बातें भी तो,

सूना मन का आंगन है,

जीवन में कुछ दुख भी हैं या,

दुख ही बस जीवन है।

असमंजस में खोता जीवन।।


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