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Reena Sao

Abstract Tragedy Classics

4  

Reena Sao

Abstract Tragedy Classics

अश्रुधारा की कहानी

अश्रुधारा की कहानी

1 min
270


अपनों से खाए धोखों की,

मैं किस्सा मुंह जुबानी हूं

अपनों के प्रेम के लिए तरसती,

मैं अश्रुधारा की ज़िंदा कहानी हूं !


अपनों के विरह की आग में तपी,

कुछ अनजानी, रु-शनासी हूं

लाख कोशिशों के बावजूद,

जो पता ना लगा सकी

उन गलतियों की करती माज़रत हूं

जरुरत के समय न था कोई,

खुद से ही हरबार संभली हूं

अपनों के ही घर में मैं,

मेहमानों सी रहती हूं

मैं अश्रुधारा की ज़िंदा कहानी हूं !


दोस्त, दुश्मन, रिश्तेदार कोई नहीं मेरा,

जब अपनों ने ही मुझे कर दिया पराया

अमावस की काली अंधेरी रातों जैसी,

स्याह सी बिखरी थी जिंदगी मेरी

बिन गलती के हमेशा मैंने सजा पाई,

और की जिसने गलती,

वही उन सबकी अपनी हुई

जब भी गिरते हैं अश्क मेरे,

रातों को तकिए भीगो लेती हूं

मैं अश्रुधारा की ज़िंदा कहानी हूं !


सबके होते हुए मैं तन्हां रही,

मुजरिमों की तरह हरपल सजा पाई

मुसलसल टूटती रही हरबार

खुद गिरती, संभलती, लड़ती,

बेतहाशा भागती रही लगातार

माँ का स्पर्श, पिता का स्नेह

सिर्फ यादों में है ज़िंदा

इन यादों के जरिए ही जिंदगी जीती हूं

मैं अश्रुधारा की ज़िंदा कहानी हूं !


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