अश्क
अश्क
जीने का सहारा हो,
क्यों आँखों से बह जाते हो
किसी असहाय मुद्रा में,
तुम क्यों पराए बन जाते हो ||
जब मैं एक मंजिल पा लेती हूँ
तो आगे ही बढ़ने की मुझमें,
क्यों ये आस जगाते हो ||
मैं तो अकेली तन्हा हूँ फिर,
अपनों के होने का मुझको,
क्यों अहसास दिलाते हो ||
पैरों में जंजीरें डालकर,
क्यों पायल का नाम बताते हो ||
किस्मत से मिली सफलता को,
क्यों कर्मों का फल बतलाते हो ||
जीने का सहारा हो,
क्यों आँखों से बह जाते हो