अरे! प्रतिष्ठा पाने वालों
अरे! प्रतिष्ठा पाने वालों
ऊँचाई पर जाने वालों, नीचे भी तो देखो तुम।
अरे! प्रतिष्ठा पाने वालों हो जाओगे पल में गुम।।
आसमान में उड़ने वाले पंछी नीचे आते हैं।
अपने नीड़ों में रहकर भी सुखमय समय बिताते हैं।
जीत भले ही पा जाते हैं, मुश्किल से तूफानों पर
गर्व नहीं करते हैं सारस, अपनी कठिन उड़ानों पर।
पाकर जग में मान-प्रतिष्ठा, रहना तो सीखो गुमसुम।
ऊंचाई पर जाने वालों, नीचे भी तो देखो तुम।।
कितने सारे आए जग में, ऊंचाई पाने ख़ातिर
लेकिन जो भी आता जग में, आता है जाने ख़ातिर।
फिर भी अपनी ऊंचाई पर उनको बड़ा घमंड रहे
इसी एक आदत के कारण जीवन भर वे कष्ट सहे।
सब कुछ होने पर भी वे सब, कहलाते कुत्ते की दुम।
ऊँचाई पर जाने वालों, नीचे भी तो देखो तुम।।
तेज़ वेग से बहती नदियाँ खुद पर जब इठलाती हैं।
उतनी ही जल्दी वे जाकर सागर में मिल जाती हैं।
अरे! प्रतिष्ठा पाने वाले मद में जितने चूर रहे।
इस छोटी-सी धरती पर वे अपनों से ही दूर रहे।
जैसे दूर गगन में रहते चन्दा-सूरज औ' अंजुम।
ऊँचाई पर जाने वालों, नीचे भी तो देखो तुम।।
