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Bhaurao Mahant

Abstract

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Bhaurao Mahant

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मैं हार गया तो हार गया

मैं हार गया तो हार गया

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हार गया तो हार गया, क्यों उसका शोक मनाऊँ मैं।

बार-बार अब सोच उसे, क्यों खुद को दुख पहुँचाऊँ मैं।


जो बीत गई सो बात गई।

समझो अँधियारी रात गई।

अनुकूल नहीं थी वह बेला-

इसलिए मुझे दे घात गई।


छूट गए जो क्षण मुझसे, अब वापस कैसे लाऊँ मैं।

हार गया तो हार गया, क्यों उसका शोक मनाऊँ मैं।।


मिलती मुझको यदि हार नहीं।

जय का मिलता आधार नहीं।

होता मेरे इस जीवन मे-

फिर साहस का विस्तार नहीं।


मुझे हार से सीख मिली, यह कैसे अब जतलाऊँ मैं।

हार गया तो हार गया, क्यों उसका शोक मनाऊँ मैं।।


मैं सारस हूँ या तीतर हूँ।

मैं सूखा हूँ या की तर हूँ।

पता हार से चला मुझे-

कितने पानी के भीतर हूँ।

मुझको मेरा ज्ञान हुआ, तो फिर क्यों पछताऊँ मैं।

हार गया तो हार गया, क्यों उसका शोक मनाऊँ मैं।।




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