अपनों से जुदा
अपनों से जुदा
जिधर देखो उधर ही लोग परेशान क्यों है,
दूसरों के साथ पर अपनों से जुदा क्यों है।
वक्त बीत रहा या कट रहा समझ नहीं आता,
ओरों से खुश और अपनों से खफा क्यों है।
चारों और नफरत की दीवार खड़ी कर दी ,
उन दीवारों के पीछे अपनों को ढूंढता क्यों है।
उस सजे हुए उपवन को तुमने ही उजाड़ा था,
आज मुरझाए उपवन में फूल ढूंढता क्यों हैं।
