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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

अपनो ने सताया

अपनो ने सताया

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मुझे अपनों ने सताया बड़ी बेरहमी से

लहूं बहाया बातों की गहमागहमी से


दिखता नहीं, जख़्म इस शरीर पे कोई,

भीतर जख़्म दिया, प्यार की कमी से


रोता-बिलखता रहता है, मेरा यह दिल

अपनों की बेवजह, फिजूल बेरुखी से


अब अंधकार ही दिखता है, जिंदगी में

इसे सुलाया, अपनों ने हंसी-खुशी से


उजाले की कामना अब छोड़ सी दी है,

दिल जलाया, अपनों ने स्वार्थ तीली से


फिर भी यूँ जीना तो नहीं छोड़ सकते है,

खुद हाथों, खुद गला नहीं घोंट सकते है,


हम लड़ रहे है, भीतर की गम जमीं से,

बनकर निकलेंगे परिंदे, गम सरजमीं से,


हमने सोचा, बालाजी बिन सब पोंछा है,

जिंदगी को जीएंगे, बालाजी की नमी से


रोएंगे, तड़पेंगे, नाम लेंगे बालाजी तेरा,

कटेंगे भव बंधन हनुमानजी तुम्ही से


आप बगैर सब रिश्ते लगते मतलबी से

आप ही हो निःस्वार्थता की जननी से


आप से खिलेंगे पुष्प, उजड़ी जिंदगी के

आप ही हो बालाजी, उद्देश्य जिंदगी के


आप बिन जिंदगी होकर भी मरी पड़ी है,

आप हो बालाजी बहाना जिंदगी जीने के


अब से छोड़ दी है, रिश्तेदारों की दुनिया,

दिल लगा लिया, बालाजी सिर्फ तुम्ही से



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