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Neeraj pal

Abstract Inspirational

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Neeraj pal

Abstract Inspirational

अपनी व्यथा।

अपनी व्यथा।

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कैसी लीला है प्रभु यह तेरी,

जो तेरे दर पर ना आ पाऊँ।

कहना तो बहुत कुछ है लेकिन,

कैसे अपनी व्यथा सुनाऊँ।।


तू ही अगर रूठ गया तो फिर

मैं किस दर प्रभु जाऊँ।

सब की पीड़ा अपने ही ऊपर ले ली,

अब कैसे सत्संग आऊँ।।


जग कल्याण के लिए ही तो तुमने प्रभु,

इतनी पीड़ा उठाई।

तुम इतने निष्ठुर नहीं हो प्रभु जी,

तुम बिन जग कुछ नाही।


इस हृदय की व्यथा अब कह नहीं सकता,

तुम ही तो हो एक सहारा।

कैसे इन अश्रु बिंदुओं को तुम तक भेजूँ,

चारों तरफ है अंधियारा।।


इस कलियुग में एक ही तो है

"रामाश्रम सत्संग" हमारा।

 तुम तो हो परम भागवत के दुलारे ,

तुम्हारा ही सकल पसारा।।



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