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V. Aaradhyaa

Romance

4.5  

V. Aaradhyaa

Romance

अपने बलिष्ठ बांहों में भर लो

अपने बलिष्ठ बांहों में भर लो

1 min
325


ये नीम सर्दी की बेहद सर्द और लंबी लंबी रातें ,

मुझसे करती रहती हैं हर रात यही शिकायतें !

अब के ये जो सर्दियां जोर शोर से ऐसे आई हैं ,

वो अब ज़रूर करने वाली हैं कुछ हम पे इनायतें !


वो जो कभी मेरा बेहद अपना हुआ करता था ,

वो जो मुझे सबसे ज़्यादा जानता पहचानता था !

वो शख्स आज मुझसे इतना दूर हो गया है जबसे ,

मेरी सर्द रातें बेहद अकेली अकेली हो गईं है तबसे !


इस अँधेरी रात की नीरवता में दिल से यही एक ,

दबी हुई सी और बड़ी महीन सी पुकार आती है !

कि ... एक बार आओ और फिर से संवार दो मुझे ,

अपने उन बलिष्ठ बांहों के अंकवार में भर लो मुझे !


आओ ... कि... तुम्हारा लोमस स्पर्श पाकर...

अपने वज़ूद के आपाद मस्तक लरज़ जाऊँ मैं ;

तुममें समाकर बहा दूँ अपना मान और अभिमान ,

तुममें पूर्णतः समाहित होकर , समर्पित होकर ,

कुछ और निखर जाऊँ, कुछ और सिरज जाऊँ मैं...


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