अपने बलिष्ठ बांहों में भर लो
अपने बलिष्ठ बांहों में भर लो
ये नीम सर्दी की बेहद सर्द और लंबी लंबी रातें ,
मुझसे करती रहती हैं हर रात यही शिकायतें !
अब के ये जो सर्दियां जोर शोर से ऐसे आई हैं ,
वो अब ज़रूर करने वाली हैं कुछ हम पे इनायतें !
वो जो कभी मेरा बेहद अपना हुआ करता था ,
वो जो मुझे सबसे ज़्यादा जानता पहचानता था !
वो शख्स आज मुझसे इतना दूर हो गया है जबसे ,
मेरी सर्द रातें बेहद अकेली अकेली हो गईं है तबसे !
इस अँधेरी रात की नीरवता में दिल से यही एक ,
दबी हुई सी और बड़ी महीन सी पुकार आती है !
कि ... एक बार आओ और फिर से संवार दो मुझे ,
अपने उन बलिष्ठ बांहों के अंकवार में भर लो मुझे !
आओ ... कि... तुम्हारा लोमस स्पर्श पाकर...
अपने वज़ूद के आपाद मस्तक लरज़ जाऊँ मैं ;
तुममें समाकर बहा दूँ अपना मान और अभिमान ,
तुममें पूर्णतः समाहित होकर , समर्पित होकर ,
कुछ और निखर जाऊँ, कुछ और सिरज जाऊँ मैं...