अपना रास्ता
अपना रास्ता
मैने लक्ष्य को गले लगा लिया।
आत्म विश्वास के दीप को जला दिया।
अलोक कर के निकल गया।
पकड़ लिया अपना डगर,
जिसे खोज थी सत्य की नजर।।
कीचड़ मिले पथ पर।
मैं पवित्र समझ कर,
अपना पैर कीचड़ में रख दिया।
मुझे दृढ़ इच्छा थी ,
सत्य के पथ पर जाना है।
मैंने पैदल यात्रा कर लिया।।
मैं सोचता रहा, जाऊं किधर, जहां जाता हूं,
उधर मिलता है , बेमतलब का जहर।
मन की लहर न उठी,
और उठी भी तो वो सत्य की नजर।
मैंने अपने सपने को झाड़ू बना लिया।
रास्ते को साफ कर दिया, और निकल गया।।
